किस्मत अपनी

किताबों में खोयी हुई थी वो 
न जाने किस पन्ने पे रुक  गयी 
लिखा क्या था ,
लिखा क्या था उस पन्ने पे 
ये जान न सका कोई .... 

क्या कोरा था वो कागज़ 
या बात कोई छू गयी दिल को 
की वो रुक गयी वहीँ ..... 
क्यों?
यह जान न सका कोई 

जाने न कोई क्या लिखा है 
इस किस्मत की किताब में 
कहीं खो जाते है 
कभी रुक जाते है 
कोई टोक दे तो मुड़  जाते है 
कभी रास्ते लम्बे होते है 
कहीं गढ़े कम होते है 

हर जगह ,हर डगर पे 
सबकी किताब भिन्न होती है 
यहाँ दर्पण  भी  छवि  नहीं दिखाता 
लिखे अक्षर भी क्या पता उलटे हो जाये ?
ज़िन्दगी गुमनाम नहीं 
लेकिन इतनी आसान नहीं |  


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