"अंग्रेज़ चले गए पर अंग्रेजी छोड़ गए "
"अंग्रेज़ चले गए पर अंग्रेजी छोड़ गए " अक्सर लोगों का यही कहना होता है । लेकिन एक बार फिर इस वाक्य की ओर देखिये। क्या आपको ऐसा नही लगता की अँगरेज़ अंग्रेजी छोड़ के नहीं गए शायद हम अंग्रेज़ों की गुलामी करते- करते यही भूल गए की अंग्रेजी हमारी भाषा , हमारी धरोहर नहीं थी पर हमने इसे अपना लिया और आज तक इस भाषा को ही महत्व देते आ रहे है । हमारी भारतीय भाषाएँ आज अपने ही देश में मौन हो कर रह गयी है । क्या इसका कारन हम नही ? आज हम खुद अंग्रेजी का गुणगान गाये जा रहे है । इसका सबसे प्रथम उदहारण तो हमारी शिक्षा व्यवस्था ही है जहाँ दसवी कक्षा के पश्चात ग्यारहवीं कक्षा में अंग्रेजी पढ़ना ज़रूरी होता है लेकिन हिंदी या राज्य भाषा नही। … आखिर ऐसा क्यों ? मुझे तो आज तक इस प्रश्न का उत्तर नही मिला । यही तक अंग्रेजी सिमित नही बल्कि ब्रिटिशर्स का प्रभाव हर क्षेत्र में देखने को मिलता है जैसे की लॉ , जो देश में वकील है उनके पोशाक भी अंग्रेज़ो के प्रजा काल से आज तक वही है जो वो बना के गए "ब्लैक एंड वाइट ड्रेस "। आज के युग में , हमारी देश की आज़ादी के ६८ साल बाद भी हम अंग्रेज़ों के गुलाम भल